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ग़ज़ल
हमारे क़त्ल पर चश्म-ए-फ़लक में ख़ून उतरेगा
फ़ज़ाओं में सजेगा सुर्ख़ से तूफ़ान का मंज़र
ताहिर अदीम
ग़ज़ल
ख़ाक होने से बना चश्म-ए-फ़लक का सुर्मा
ख़ाकसारी जो नहीं ख़ाक भी इंसाँ में नहीं
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
ग़ज़ल
जो मेरी चश्म-ए-फ़लक पर कभी ठहर न सका
सहाब था कि हसीं एक ख़्वाब था क्या था