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ग़ज़ल
चश्म-ए-मस्त-ए-यार का हम-चश्म लो पैदा हुआ
देखना अब पोस्त खींचा जाएगा बादाम का
मियाँ दाद ख़ां सय्याह
ग़ज़ल
देख कर कहते हैं सब अबरू ओ चश्म-ए-मस्त-ए-यार
क्यूँकि मेहराब-ए-हरम के नीचे मय-ख़ाना रहा
हस्सामुद्दीन हैदर नामी
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ग़ज़ल
दिखा कर मुझ को चश्म-ए-मस्त मस्ताना बना डाला
पिला कर आज साक़ी तू ने दीवाना बना डाला