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ग़ज़ल
जल गया आग में आप अपने मैं मानिंद-ए-चिनार
पीसते रह गए दाँत अर्रा-ओ-सोहाँ क्या क्या
हैदर अली आतिश
ग़ज़ल
तिरी सवारी में कब पंज शाख़े हैं ऐ सर्व
जिलौ में सेहन-ए-गुलिस्ताँ से है चिनार आया
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
इस की छुवन से जल उठा मेरे बदन का रोम रोम
मुझ को तो दस्त-ए-यार ने जैसे चिनार दिया