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नज़्म
दरख़्त-ए-ज़र्द
न जाने आरिबा क्यूँ आए क्यूँ मुस्तारबा आए
मुज़िर के लोग तो छाने ही वाले थे सो वो छाए
जौन एलिया
ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
नज़्म
परछाइयाँ
फिर दो दिल मिलने आए हैं
फिर मौत की आँधी उट्ठी है फिर जंग के बादल छाए हैं
साहिर लुधियानवी
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नज़्म
मजबूरियाँ
वो बादल सर पे छाए हैं कि सर से हट नहीं सकते
मिला है दर्द वो दिल को कि दिल से जा नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तेरी आवाज़
रात सुनसान थी बोझल थीं फ़ज़ा की साँसें
रूह पर छाए थे बे-नाम ग़मों के साए