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ग़ज़ल
हमारा मक़सद-ए-अव्वल है जज़्ब-ए-शौक़-ओ-सर-मस्ती
यही वो ज़िंदगी है जिस को हम कामिल समझते हैं
कलीम अहमदाबादी
ग़ज़ल
फ़ाक़ा-मस्ती में भी जीने की अदा ले जाएँगे
ये लुटेरे मेरे घर से और क्या ले जाएँगे
बद्र-ए-आलम ख़ाँ आज़मी
नज़्म
दिलदार देखना
जज़्ब-ए-मुसाफ़िरान-ए-रह-ए-यार देखना
सर देखना, न संग, न दीवार देखना