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नज़्म
जश्न-ए-मसर्रत
यूँ जश्न-ए-मसर्रत की हर सम्त घटा छाई
फूलों पे निखार आया कलियों को हँसी आई
मसूदा हयात
नज़्म
मुफ़ाहमत
ये जश्न जश्न-ए-मसर्रत नहीं तमाशा है
नए लिबास में निकला है रहज़नी का जुलूस
साहिर लुधियानवी
समस्त
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ग़ज़ल
ये भी कमाल ही तो है क़ाबिल-ए-दाद साहिबान
आज कलाम-ए-'जश्न' में कोई कमाल भी नहीं
सुनील कुमार जश्न
ग़ज़ल
जाने क्या बात है क्यूँ जश्न-ए-मसर्रत में नदीम
याद आती है तिरी शाम-ए-ग़रीबाँ की तरह
फ़ैज़ुल हसन ख़्याल
ग़ज़ल
इक जश्न-ए-मसर्रत पेश-ए-बहीर था उस दिन भी
सब साकित हो के शिकोह-ए-सिपाह को देखते थे