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ग़ज़ल
ज़ख़्मों से यूँ है जिस्म की दीवार ज़ौ-फ़गन
शोलों का रक़्स शाख़-ए-शजर पर हो जिस तरह
सैफ़ ज़ुल्फ़ी
नज़्म
तामीरी तख़रीब
नर्म-ओ-नाज़ुक ताबिशों से ज़ौ-फ़गन है आफ़्ताब
आसमाँ का मतला-ए-रंगीं है महरूम-ए-सहाब
नख़्शब जार्चवि
नज़्म
बरसात की शाम
काम सोने का बना है गुम्बद-ए-अफ़्लाक पर
ज़ौ-फ़गन होता है आलम इस का फ़र्श-ए-ख़ाक पर
बिस्मिल इलाहाबादी
ग़ज़ल
मैं ग़मों की तीरगी में नहीं इस क़दर भी तन्हा
कोई मुझ से दूर रह कर मिरे दिल में ज़ौ-फ़गन है
फ़रीद जावेद
नज़्म
जलियाँ-वाला बाग़
तेरे छलनी दिल के ज़ख़्मों की जलन
मिस्ल-ए-शम्अ'-ए-हुर्रियत है ज़ौ-फ़गन
राम लाल वर्मा हिंदी
ग़ज़ल
हमें कू-ब-कू जो लिए फिरी किसी नक़्श-ए-पा की तलाश थी
कोई आफ़्ताब था ज़ौ-फ़गन सर-ए-रहगुज़ार कहाँ रहा