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ग़ज़ल
साग़र-ए-सिफ़ालीं को जाम-ए-जम बनाया है
फैल कर मिरे दिल ने ''मैं'' को ''हम'' बनाया है
परवेज़ शाहिदी
ग़ज़ल
कुछ अपने काम नहीं आवे जाम-ए-जम की किताब
किफ़ायत अपने को बस एक अपने ग़म की किताब
क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी
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ग़ज़ल
पता रक़ीब का दे जाम-ए-जम तो क्या होगा
वो फिर उठाएँगे झूटी क़सम तो क्या होगा
ख़्वाजा रियाज़ुद्दीन अतश
ग़ज़ल
हिक़ारत से न देखो दिल को जाम-ए-जम भी कहते हैं
इसी ख़ाक-ए-तपाँ को फ़ातेह-ए-आलम भी कहते हैं
सहाब क़ज़लबाश
ग़ज़ल
कब हक़ीक़त वो भला दुनिया में जाम-ए-जम की है
जो तुम्हारे मय-कदे में मेरी चश्म-ए-नम की है
मुज़म्मिल अब्बास शजर
ग़ज़ल
जाम-ए-जम माँगे न जमशेद का साग़र माँगे
लुत्फ़ की एक नज़र ये दिल-ए-मुज़्तर माँगे
अब्दुल क़य्यूम ज़की औरंगाबादी
नज़्म
जाम-ए-जम के साथ
अफ़यूँ का दौर भी है मय-ए-अर्ग़वाँ के बाद
जाम-ए-सिफ़ाल हाथ में है जाम-ए-जम के साथ
इस्मतुल्लाह इस्मत बेग
ग़ज़ल
हुई इस दौर में मंसूब मुझ से बादा-आशामी
फिर आया वो ज़माना जो जहाँ में जाम-ए-जम निकले
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
जाम-ए-सिफ़ाल-ओ-जाम-ए-जम कुछ भी तो हम न बन सके
और बिखर बिखर गए कूज़ा-गरों के दरमियाँ