aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "जोड़ने"
उस बस्ती के लोगों से जब बातें कीं तो ये जानादुनिया भर को जोड़ने वाले अंदर अंदर बिखरे हैं
दिल के टुकड़ों को जोड़ने के लिएदोस्त सच मुच बहुत ज़रूरी हैं
कई मर्तबा तकल्लुफ़-बर-तरफ़ करके मिन्नत-समाजत की, हाथ जोड़े, दाढ़ी में हाथ दिया, कान पकड़ कर उठा बैठा और हर्फ़-ए-मतलब यूँ ज़बान पर लाया कि “ऐ माहिर-ए-ग़ालिबयात, आपको आपके हज़रत-ए-ग़ालिब मुबारक, मुझ मग़्लूब को मेरे ही हाल पर छोड़ दीजिए तो आपकी ग़ालिबियत में कौन सा बट्टा लग जाएगा? “मैं एक...
मैंने बड़ा सही सवाल किया, “क्यों?” ढूंढ़ो ने भी इसका बड़ा सही जवाब दिया, “इसलिए... इसलिए कि वो दूसरों जैसी नहीं। बाक़ी जितनी हैं, सब पैसे की पीर हैं... हरामी हैं अव्वल दर्जे की... पर ये जो है न... कुछ अ’जीब-ओ-ग़रीब है। निकाल के लाता हूँ तो राज़ी हो जाती...
“मुझसे बेहतर आदमी तो आपको मिल रहा है लेकिन मुझसे बेहतर घर न मिलेगा आपको मग़रिबी पाकिस्तान में।” इसी तरह संतो जमादारनी के जाने पर बीबी ने सोचा था। हमसे बेहतर घर कहाँ मिलेगा कलमुही को। इसी तरह ख़ुर्शीद के चले जाने पर वो दिल को समझाती थी कि उस...
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औसाफ़ ये कहने की ज़रूरत शायद न हो कि “होश-रुबा” वाले सरापे में मिसरे छोटी बहर के हैं और फिर भी शायर ने हुरूफ़-ए-अतफ़ व जार, अफ़आल वग़ैरा लाकर बयान को मरबूत रखा है। जोश साहब की बहर मुसम्मन है, लेकिन उन्होंने सिर्फ़ सिफ़ात जमा किए हैं। उनको जोड़ने की...
आगे चल कर बरगद का दरख़्त मिला। ये वो जगह थी जहां हीरा, बफाती, बुलाक़ी, तीनो, नेवला, सूरज, बल्ली और कनवा साला क्या नाम था उसका और कौन कौन सारी की सारी टोली जमा होती थी और दिन-भर सियार मार डंडा उड़ा करता था। वो गढ़य्या के उस पार अमरूद...
हम जोड़ने वाले हैं फ़लक और ज़मीं कोमंदिर की या मस्जिद की सियासत नहीं करते
वो आस जोड़ने चली हैरूह जान कर अपनी वो
कूचा ओ बाज़ार से फिर चुन के रेज़ा रेज़ा ख़्वाबहम यूँही पहले की सूरत जोड़ने लग जाएँगे
एक जंत्री ख़रीद लो और दुनिया भर की किताबों से बेनियाज़ हो जाओ। फ़ेहरिस्त-ए-ता'तीलात इसमें, नमाज़-ए-ईद और नमाज़-ए-जनाज़ा पढ़ने की तराकीब, जानवरों की बोलियाँ, दाइमी कैलेंडर मोहब्बत के ता'वीज़, अंबिया-ए-कराम की उम्रें, औलिया-ए-कराम की करामतें, लकड़ी की पैमाइश के तरीक़े, कौन सा दिन किस काम के लिए मौज़ूं है। फ़ेहरिस्त-ए-उ'र्स...
किस जगह होगा मुझे जोड़ने वाला लम्हावो घड़ी ज़ात के दानों को पिरोने वाली
बंदू मियाँ शुजाअत अली की सूरत तकने लगे, मिर्ज़ा साहब हुक़्क़े की नै होंटों में दबाना चाहते थे लेकिन हाथ जहाँ का तहाँ रह गया और नै पर मुट्ठी की गिरफ़्त क़वी हो गई। मंज़ूर हुसैन वाक़िआत की पिछली कड़ियों को जोड़ने में मसरूफ़ था। शुजाअत अली ने दम लिया,...
आँखों में से आँसू बहते हैं। कई कई दिन वाक़ई खाना नहीं खाया जाता, लेकिन इसके साथ ही साथ हाथों पर मेहंदी लगवाई जाती है, ढोलक बजाने वाली सहेलियों के साथ बैठा जाता है। गप्पें उड़ाई जाती हैं और तख़लिए में अपनी सबसे अज़ीज़ सहेली के साथ कंपकंपी पैदा करने...
“जान-ए-मन, एक फ़ुज़ूल और बे-बुनियाद किस्म के वहम की बिना पर आप हमारी दिल-शिकनी पर तुली हुई हैं। ये भी कोई बात हुई कि जितने काले मेरे बाप के साले। रियासत के सारे हरामी पिल्लों से आपका ख़ून का रिश्ता जोड़ने पर उधार खाए बैठी हैं तो इतना समझ लीजे...
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