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ग़ज़ल
बनते बनते ढह जाती है दिल की हर तामीर
ख़्वाहिश के बहरूप में शायद क़िस्मत रहती है
अमजद इस्लाम अमजद
कहानी
“अरे... आइए... भैया आ जाइए।” भारी पुख़्ता सेहन पर मेरे जूते गूँज रहे थे। बारह-दरूँ के दोह...
क़ाज़ी अबदुस्सत्तार
हिंदी ग़ज़ल
मिरे दिल पे हाथ रक्खो मिरी बेबसी को समझो
मैं इधर से बन रहा हूँ मैं उधर से ढह रहा हूँ
दुष्यंत कुमार
कहानी
मुग़लों के वक़्त का एक बहुत बड़ा अहाता ख़ाली पड़ा था। उसमें एक सौ इक्कावन छोटे छोटे कमरे थे, ब...