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ग़ज़ल
तरफ़-दारी नहीं करते कभी हम उन मकानों की
छतें जिन की हिमायत चाहती हों आसमानों की
कृष्ण कुमार नाज़
ग़ज़ल
आँसुओं ने भी तो कर दी है तरफ़-दारी देख
मुझे मत देख मिरी आँख की दुश्वारी देख
धीरेंद्र सिंह फ़य्याज़
ग़ज़ल
दिल-ए-नादान की यूँ ही तरफ़-दारी नहीं करनी
मुझे बे-रंग जज़्बों की ख़रीदारी नहीं करनी
सादिया आवान
ग़ज़ल
उसी दर्द-आश्ना दिल की तरफ़-दारी में रहते हैं
हम अपने-आप में गुम अपनी ग़म-ख़्वारी में रहते हैं