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ग़ज़ल
मोहब्बत का तलातुम-ख़ेज़ तूफ़ाँ दिल से उठता है
ये वो सैलाब है जो सीना-ए-साहिल से उठता है
तलअत सिद्दीक़ी नह्टोरी
ग़ज़ल
तलातुम-ख़ेज़ मौजों को भी जादा कर लिया मैं ने
किनारे पर पहुँचने का इरादा कर लिया मैं ने
अक़ील संभली
नज़्म
वो इश्क़ जो हम को लाहिक़ था
इक मौज-ए-तलातुम-ख़ेज़ उट्ठी
इक दर्द की लहर उठी दिल के रौज़न से
साजिदा ज़ैदी
ग़ज़ल
सामना था इक तो दरिया-ए-तलातुम-ख़ेज़ का
और कुछ कच्चे घड़े थे तेरे मेरे दरमियाँ
मोहम्मद फ़ख़रुल हक़ नूरी
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ग़ज़ल
सफ़ीना पार उस का हो गया बहर-ए-मोहब्बत से
हर इक मौज-ए-तलातुम-ख़ेज़ को जो नाख़ुदा समझा
अनवारुल हक़ अहमर लखनवी
ग़ज़ल
राजा अब्दुल ग़फ़ूर जौहर निज़ामी
नज़्म
अँधेरी रात का मुसाफ़िर
तलातुम-ख़ेज़ दरिया आग के मैदान हाएल हैं
गरजती आँधियाँ बिफरे हुए तूफ़ान हाएल हैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सफ़र नदिया के पानी को वदीअ'त है
अभी कुछ देर ही पहले तलातुम ख़ेज़ मौजें थीं
ज़माना उस की ठोकर पर
परवीन ताहिर
ग़ज़ल
ये किस ने डाल दी बहर-ए-तलातुम-ख़ेज़ में कश्ती
ये शोर-ए-हर्चे-बादा-बाद क्यूँ साहिल से उठता है