aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ताज़िया-दारी"
है है मिरे हुसैन को फिर कौन रोएगाबच्चे की मेरे ताज़िया-दारी करेगा कौन
अब नशात-ए-ग़म-ए-फ़ुर्क़त से सवाल इतना हैताज़िया-दारी की लज़्ज़त भी चली जाए अगर
छुन्नू लाल तरब की ना'तों और मनक़बत का एक मख़तूता किताब ख़ाना रज़ाईया रामपुर में महफ़ूज़ है। रूप चंद नामी शागिर्द साक़ी सिकंदराबादी की ग़ज़लों में एक शे'र ना'तिया ज़रूर होता था। कामता प्रशाद नादान और बिहारी लाल समर, दुर्गा सहाय सरवर, बिशन नरायन हामी, राजा मक्खन लाल, सर किशन...
हुसैनाबाद साराता'ज़िया-दारों की बस्ती थी
हर-चंद कि ख़स्ता ओ हज़ीं है आवाज़पर ताज़िया-दार शाह-ए-दीं है आवाज़
ताज़िया-दारीتعزیہ داری
carrying tazia-an emblem on a giant pageant, tableau carried on days to commemorate martyrdom-allusion
मियां मिट्ठू का नाम तो कुछ भला सा ही था। करीम बख़्श या रहीम बख़्श ठीक याद नहीं, ढाई ढोई के महीने से पहले की बात है। साठ बरस से ऊपर ही हुए होंगे। मगर एक अपनी गली वाले क्या, जो उन्हें पुकारता “मियां मिट्ठू” भटियारे थे। सराय के नहीं,...
कोहना-तर ज़ीन बदली गईफिर नई नअल-बंदी हुई
देखने वाला था मंज़र जब कहा दरवेश नेकज-कुलाहो बादशाहो ताज-दारो तख़लिया
नोकीली 'इमारतों की खिड़कियाँ खुली हैंशाएक़ीन बेचैन हैं
सूरत-ए-सब्ज़ा-ए-बे-गाना चमन से गुज़रेहम मुसाफ़िर की तरह अपने वतन से गुज़रे
शोरिश-ए-पैहम भी है अफ़्सुर्दगी-ए-दिल भी हैज़िंदगी बहता हुआ धारा भी है साहिल भी है
रौनक़ें दार की बढ़ाते हुएमैं मिरा 'अह्द को निभाते हुए
ग़मों में हंस के बिताना है क्या किया जाएयही तो सब का फ़साना है क्या किया जाए
तेरी तस्कीं का सबब कौन-ओ-मकाँ है कि नहींरूह-परवर ये जहान-ए-गुज़राँ है कि नहीं
शाइरी झंकार नहीं जो ताल पर नाचती रहेगया वक़्त
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books