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नज़्म
रूह-ए-अर्ज़ी आदम का इस्तिक़बाल करती है
तामीर-ए-ख़ुदी कर असर-ए-आह-ए-रसा देख
ख़ुर्शीद-ए-जहाँ-ताब की ज़ौ तेरे शरर में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ख़ुदा का दोस्त है तामीर-ए-दिल जो शख़्स करता हो
ख़लीलुल्लाह भी काबा का इक मेमार था क्या था
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
नज़्म
भगवान 'कृष्ण' की तस्वीर देख कर
मुझे तेरे तसव्वुर से ख़ुशी महसूस होती है
दिल-ए-मुर्दा में भी कुछ ज़िंदगी महसूस होती है
कँवल एम ए
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ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
ग़ज़ल
जो तिरी महफ़िल से ज़ौक़-ए-ख़ाम ले कर आए हैं
अपने सर वो ख़ुद ही इक इल्ज़ाम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
चली ख़िरद की न कुछ आगही ने साथ दिया
रह-ए-जुनूँ में फ़क़त बे-ख़ुदी ने साथ दिया
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
मिरी बस्ती का कोई घर भी घर जैसा नहीं लगता
कहीं तामीर-ए-बाम-ओ-दर में कोई नक़्स रहता है
अज़हर नक़वी
नज़्म
जाएँ कहाँ हम
यही बस कि तक़दीर-ए-अक़्ल ओ जुनूँ है
यही ख़िश्त-ए-तामीर-ए-कौन-ओ-मकाँ है
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
मेरे ही संग-ओ-ख़िश्त से तामीर-ए-बाम-ओ-दर
मेरे ही घर को शहर में शामिल कहा न जाए
मजरूह सुल्तानपुरी
नज़्म
अमर जोत
वरक़ तारीख़ ने तेज़ी से उल्टे
तग़य्युर ले के साज़-ओ-बर्ग-ए-ता'मीर-ए-जहाँ आया