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ग़ज़ल
ये खुलेगा मुझ पे आख़िर मेरी मंज़िल है कहाँ
जब जुनूँ 'तासीर' मुझ को दर-ब-दर ले जाएगा
शर्मा तासीर
ग़ज़ल
मता-ए-इश्क़ वो आँसू जो दिल में डूब गए
ज़मीं का रिज़्क़ जो आँसू निकल ही आते हैं
मोहम्मद दीन तासीर
नज़्म
दोराहा
बाहें फैलाए हुए रास्ता रोके है खड़ा
कौन होता है हरीफ़-ए-मय-ए-मर्द अफ़गन-ए-इश्क़
मोहम्मद दीन तासीर
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ग़ज़ल
इश्क़ पहले ही क़दम पर है यक़ीं से वासिल
इंतिहा अक़्ल की ये है कि गुमाँ तक पहुँचे
मोहम्मद दीन तासीर
नज़्म
रस-भरे होंट
एक धोका..... सराब..... मंबा-ए-नूर.....!
रस-भरे होंट देख कर 'तासीर'
मोहम्मद दीन तासीर
ग़ज़ल
आइना-दार-ए-नमूद-ए-हुस्न रोज़-अफ़्ज़ूँ जो हो
हम कहाँ से रोज़ पैदा इक नया आलम करें