aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "दयार-ए-दिल"
दयार-ए-दिल की रात में चराग़ सा जला गयामिला नहीं तो क्या हुआ वो शक्ल तो दिखा गया
दयार-ए-दिल से किसी का गुज़र ज़रूरी थाउजाड़ रस्ते पे कोई शजर ज़रूरी था
दयार-ए-दिल न रहा बज़्म-ए-दोस्ताँ न रहीअमाँ की कोई जगह ज़ेर-ए-आसमाँ न रही
दयार-ए-दिल में कोई इतना ख़ुश-नसीब तो होहरीफ़-ए-दार तो हो ज़ीनत-ए-सलीब तो हो
दयार-ए-दिल में नया नया सा चराग़ कोई जला रहा हैमैं जिस की दस्तक का मुंतज़िर था मुझे वो लम्हा बुला रहा है
अयादत पर की जाने वाली शायरी बहुत दिल-चस्प और मज़े-दार पहलू रखती है। आशिक़ बीमार होता है और चाहता है कि माशूक़ उस की अयादत के लिए आए। इस लिए वह अपनी बीमारी के तूल पकड़ने की दुआ भी मांगता है लेकिन माशूक़ ऐसा जफ़ा पेशा है कि अयादत के लिए भी नहीं आता। ये रंग एक आशिक़ का ही हो सकता है कि वो सौ-बार बीमार पड़ने का फ़रेब करता है लेकिन उस का मसीह एक बार भी अयादत को नहीं आता। ये सिर्फ़ एक पहलू है इस के अलावा भी अयादत के तहत बहुत दिल-चस्प मज़ामीन बाँथे गए हैं। हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए।
दयार-ए-दिलدیار دل
city of heart
दर्द-ए-दिल का मुदावा न ढूँडदर्द अपनी जगह क्या नहीं
न ग़म-ए-दिल के ही बस के न ग़म-ए-दौराँ केइतने आज़ाद हुए तेरे गिरफ़्तार कि बस
रह गया ख़्वाब-ए-दिल-आराम अधूरा किस काढल गई शब तो खुला है ये दरीचा किस का
मेरे सीना में ये दिल है कि कोई सौदागरमेरे एहसास का धन तोल रहा है मुझ में
कितना हसीं था जुर्म-ए-ग़म-ए-दिल कि दो-जहाँदर पे हैं आज तक मिरे रंग-ए-क़ुबूल के
नक़्द-ए-दिल है कि गरेबान के हर तार में हैहौसला अब भी बहुत तेरे ख़रीदार में है
चश्म-ए-साक़ी में है जिस दिन से मिरा शीशा-ए-दिलआलम-ए-कार-गह-ए-शीशा-गराँ रक़्स में है
देता है अब यही दिल-ए-शोरीदा मशवराजीने से तंग हो तो मियाँ मर के देख लो
इस शहर में तो कुछ नहीं रुस्वाई के सिवाऐ 'दिल' ये इश्क़ ले के किधर आ गया तुझे
खुशा-नसीब कि दीवाने हैं तो हम ऐ 'दिल'कमाल-ए-निस्बत-ए-दीवाना-गर भी रखते हैं
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