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ग़ज़ल
किसी के भूल जाने से मोहब्बत कम नहीं होती
मोहब्बत ग़म तो देती है शरीक-ए-ग़म नहीं होती
ग़म बिजनौरी
ग़ज़ल
जुनून-ए-जज़्बा-ए-उल्फ़त की बेताबी मआ'ज़-अल्लाह
जो कम होता है दर्द-ए-दिल तो फिर वहशत उभरती है
ग़म बिजनौरी
ग़ज़ल
ग़म बिजनौरी
ग़ज़ल
मुक़द्दर को तिरे मंज़ूर कुछ 'ग़म' है तो ये ही है
कि तुझ सा इस ज़माने में कोई बे-दिल नहीं मिलता
ग़म बिजनौरी
ग़ज़ल
इलाही दर्द-ए-ग़म की सरज़मीं का हाल क्या होता
मोहब्बत गर हमारी चश्म-ए-तर से मेंह न बरसाती