aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "दर-आमद"
फैज़-ए-आम दार-उल-मुताला रहमानिया, छपरा
पर्काशक
खेतों में भूक उगेगीलेकिन गंदुम तो दर-आमद कर ली जाएगी
मैंने अज़-राह-ए-दिल्लगी जिब्रईल अमीन से पूछा कि “ये उत्तर प्रदेश से क्यों निकाली गई, किस जुर्म में इस पर कमली डाली गई?” बोले, “साहिब, जिस ज़बान की लिखाई पूरब से पच्छिम जाये और जो आलम-ए-अर्वाह की ज़बान पर अमल दर-आमद करवाए वो उत्तर प्रदेश में जगह कैसे पाए?”...
इस क़दर शौक़ दर-आमद है 'मुज़फ़्फ़र' हम कोसोचते रहते हैं रुस्वाई कहाँ से आए
दर-आमद बरामद कर केरिज़्क़-ए-हलाल और अक्ल-ए-हराम कमाता था
मा'लूम हुआ, अब की दफ़ा ब-चश्म-ए-ख़ुद ये देखना चाहते थे कि वो कैमरे में कैसे नज़र आ रहे हैं! खुशामद दर-आमद करके फिर तिपाई पर चढ़ाया और क़ब्ल इसके कि घड़याल रात के बारह बजा कर नई सुब्ह और क़ानून-ए-इन्स्दाद-ए-निकाह के नफ़ाज़ का ए'लान करे, हमने उनके ख़ुफिया रिश्त-ए-मुनाकहत का...
किताब को मर्कज़ में रख कर की जाने वाली शायरी के बहुत से पहलू हैं। किताब महबूब के चेहरे की तशबीह में भी काम आती है और आम इंसानी ज़िंदगी में रौशनी की एक अलामत के तौर पर भी उस को बरता गया है। ये शायरी आपको इस तौर पर भी हैरान करेगी कि हम अपनी आम ज़िंदगी में चीज़ों के बारे में कितना महदूद सोचते हैं और तख़्लीक़ी सतह पर वही छोटी छोटी चीज़ें मानी-ओ-मौज़ूआत के किस क़दर वसी दायरे को जन्म दे देती हैं। किताब के इस हैरत-कदे में दाख़िल होइए।
साया शायरी ही क्या आम ज़िंदगी में भी सुकून और राहत की एक अलामत है। जिस में जा कर आदमी धूप की शिद्दत से बचा है और सुकून की सांसें लेता है। अल-बत्ता शायरी में साया और धूप की शिद्दत ज़िंदगी की कसीर सूरतों के लिए एक अलामत के तौर पर बर्ती गई है। यहाँ साया सिर्फ़ दीवार या किसी पेड़ का ही साया नहीं रहता बल्कि इस की सूरतें बहुत मुतनव्वे हो जाती है। इसी तरह धूप सिर्फ़ सूरज ही की नहीं बल्कि ज़िंदगी की तमाम-तर तकलीफ़-दह और मन्फ़ी सूरतों का इस्तिआरा बन जाती है।
क़रीब हो कर दूर होने और दूर हो कर क़रीब होने की जो मुतज़ाद सूरतें हैं उन्हें शायरी में ख़ूब ख़ूब बरता गया है। एक आशिक़ इन तजर्बात से कसरत से गुज़रता है और इन लमहात को आम इंसानों से मुख़्तलिफ़ सतह पर जीता है। ये शायरी ज़िंदगी को शुऊर की एक वसी सतह पर देखती और परखती है। ये इन्तिख़ाब पढ़िए।
दर-आमदدر آمد
income, return, imports
“माई!” मुझे मा’लूम था कि ड्यूक ऑफ़ एडिनबरा की मज़ाह की रग अगर फड़क उठे तो वो अपनी लागत पर भी बोलने से नहीं चूकता। “क्या तुम्हारी बीवी भी कहीं कोई मलका है?” “हाँ, योअर रॉयल हाईनेस। आपके यहाँ तो ग्रोसिरी की बेटी को प्राइम मिनिस्टर के ऑफ़िस तक ही...
जज: (मुल्ज़िम से) "तुमने इस आदमी के मुँह पर घूँसा क्यों मारा?" मुल्ज़िम: “जनाब इसने आज से दो साल पहले मुझे गैंडा कहा था।"...
बादलों को ग़ैर ममालिक में बरामद किया गया ताकि बिदेसी सिक्का कमाया जा सके। जनता फ़ाक़ाकशी करने पर मजबूर हो गई। इन्साफ़ का तक़ाज़ा है कि सरकार को फ़ौरन मुस्तफ़ी होजाना चाहिए, इससे अगले साल इतनी ज़बरदस्त बारिश हुई कि जगह जगह सैलाब आना शुरू हो गए। हिज़्ब-ए-इख़्तिलाफ़ को ऐसा...
तीसरे ने उस्ताद से पूछा, “क्यों उस्ताद तुम्हारी क्या राय है?” उस्ताद कुछ न कह सका, न उस तजवीज़ के हक़ में न उसके ख़िलाफ़। उसने ख़ामोश ही रहने में मस्लिहत समझी। दूसरे ही दिन से इस तजवीज़ पर अमल दर-आमद शुरू हो गया। हर-रोज़ रात को दिन-भर की आमदनी...
(3) रस्म-उल-ख़त बदलने से पहले सबसे बड़ा सवाल ये तय होना चाहिए कि नए रस्म-उल-ख़त में उर्दू अल्फ़ाज़ का महज़ तलफ़्फ़ुज़ ज़ाहिर किया जाएगा, या इमला भी ज़ाहिर किया जाएगा? अगर सिर्फ़ तलफ़्फ़ुज़ ज़ाहिर किया जाएगा तो नए रस्म-उल-ख़त में उर्दू के बहुत से हुरूफ़-ए-तहज्जी बाक़ी न रहेंगे। मसलन स(س),...
मंटो साहब के मुमताज़ मुतर्जिम ख़ालिद हसन ने अपने एक कालम में अहमद राही के एक ग़ैर मत्बूआ इंटरव्यू का एक फ़िक़रा दोहराया है कि मंटो ने उसी दिन से मरना शुरू कर दिया था जब वो पाकिस्तान में दाख़िल हुआ। लेकिन इस फ़िक़रे में बम्बई छोड़ने और लाहौर आने...
सलाहू को ये तरकीब पसंद आई। चुनांचे फ़ौरन इस पर अ’मल-दर-आमद शुरू हो गया। इक़बाल बहुत ख़ुश हुई कि इस ढलती उम्र में उसे सलाहू जैसा ख़ूबरू चाहने वाला मिल गया। ये सिलसिला देर तक जारी रहा । इस दौरान सैंकड़ों मर्तबा अलमास सलाहू के सामने आई। बा’ज़ औक़ात उसके...
अठारवीं और उन्नीसवीं सदी में यूरोप के मुख़्तलिफ़ मुल्कों ने रूमानियत और अ'लामत-पसंदी को अदबी तहरीकों के तौर पर फ़रोग़ पाते हुए देखा और उन तहरीकों के जे़र-ए-असर ये ख़याल यूरोप में आहिस्ता-आहिस्ता आ'म हुआ कि शे'र को किसी ख़ारिजी क़ानून का ताबे’ नहीं बल्कि शाइ'र के इलहाम और तख़्लीक़ी...
कहावत है, “देर आयद दुरुस्त आयद।” अपनी आमद दुरुस्त साबित करने का अब एक ही तरीक़ा है, देर से आएँ।...
गुरूजी बोले, "अरे भाई आजकल के लौंडे बुरी सोहबत में पड़ कर ख़ानदानी इज़्ज़त को भुला बैठे हैं। कानपुर में कौन था जो राम भरोसे की पैरवी करता। नतीजा ये हुआ कि दो साल की सज़ा हो गई। सीता ने उसके लिए बहुत दौड़ भाग की और जो शख़्स भी...
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