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ग़ज़ल
काँप उठता है दिल-ए-'मक़्सूद' ग़म के नाम पर
मैं तो इक इक दर्द सह लेता हूँ मुस्काते हुए
मक़सूद अनवर मक़सूद
ग़ज़ल
तू ने क्या ने'मत अता की है दिल-ए-'मक़्सूद' को
मुझ में है जो दर्द वो कोई फ़रिश्ते में नहीं
मक़सूद अनवर मक़सूद
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ग़ज़ल
हम ने किया 'मक़्सूद' ख़सारे का ये सौदा जीवन भर
अपने बारे में नहीं सोचा बात सभों की मानी है
मक़सूद अनवर मक़सूद
ग़ज़ल
इस दिल-ए-बेताब को तस्कीन आख़िर कौन दे
इस की क़िस्मत में तहम्मुल के सिवा कुछ भी नहीं
मक़सूद अनवर मक़सूद
ग़ज़ल
मार के ठोकर रुस्वाई को हक़ अपना ले लो 'मक़्सूद'
बेच के ग़ैरत जाम-ए-मुरव्वत छलकाने से क्या होगा
मक़सूद अनवर मक़सूद
ग़ज़ल
तुम तो शादाँ थे कि बस हार गया है 'मक़्सूद'
किस की दर-अस्ल हुई मात तुम्हें क्या मा'लूम
मक़सूद अनवर मक़सूद
ग़ज़ल
तेरी ये सोहबत है ऐसी जिस पे सदियाँ वार दूँ
छोड़ कर मुझ को न ये मा'सूम पल जाए कहीं
मक़सूद अनवर मक़सूद
ग़ज़ल
मेरे तेवर ही ऐ 'मक़्सूद' बचत है मेरी
सख़्त मुश्किल में भी नीलाम ये ज़ेवर न हुआ
मक़सूद अनवर मक़सूद
ग़ज़ल
उन्हें है जड़ना ज़मीं के लिबास में 'मक़्सूद'
चलो सितारे हद-ए-आसमाँ से माँगते हैं