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नज़्म
एक नज़्म
ये दस्त-ए-गिराँ है कि बर्ग-ए-ख़िज़ाँ-दीदा
सूखी हुई ज़र्द शाख़ों पे लटके हुए
अबुल फैज़ सहर
नज़्म
एक नज़्म
ये दस्त-ए-गिराँ है कि बर्ग-ए-ख़िज़ाँ-दीदा
सूखी हुई ज़र्द शाख़ों पे लटके हुए