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शेर
दिल-ए-बेबाक का मालिक हूँ मुझे ख़ौफ़ नहीं
हाकिम-ए-वक़्त के हुक्म-ए-रसन-ओ-ज़िंदाँ से
ज़ुबैर अहमद सानी
ग़ज़ल
जाने क्यों तीर-ए-सितम चलते हैं हम पर 'बेबाक'
अपना मस्लक तो मोहब्बत के सिवा कुछ भी नहीं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
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ग़ज़ल
वो जिस ने छीनी मता-ए-हयात ऐ 'बेबाक'
हम उस से भी तो तअ'ल्लुक़ बहाल रखते हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
दिल में शर्मिंदा हैं एहसास-ए-ख़ता रखते हैं
हम गुनहगार हैं पर ख़ौफ़-ए-ख़ुदा रखते हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
'बेबाक' मिटा सकता नहीं हम को ज़माना
हम हक़ के लिए बर-सर-ए-पैकार रहे हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
फ़ी-ज़माना है यही मस्लहत-ए-अक़्ल-ओ-शुऊर
दिल में ख़्वाहिश कोई उभरे तो दबा ली जाए
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
दिल न माना अक़्ल ने ये बात समझाई बहुत
इश्क़ में हर गाम पे होती है रुस्वाई बहुत
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
ग़ज़ल
ख़ुशबू देते हैं सभी दाग़ पुराने दिल के
जब ये पुरवाइयाँ यादों को हवा देती हैं