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कुल्लियात
सर-ए-दौर-ए-फ़लक भी देखूँ अपने रू-ब-रू टूटा
कि संग-ए-मोहतसिब से पा-ए-ख़ुम दस्त-ए-सुबू टूटा
मीर तक़ी मीर
ग़ज़ल
दौर-ए-फ़लक जब दोहराता है मौसम-ए-गुल की रातों को
कुंज-ए-क़फ़स में सुन लेते हैं भूली-बिसरी बातों को
नासिर काज़मी
शेर
है दौर-ए-फ़लक ज़ोफ़ में पेश-ए-नज़र अपने
किस वक़्त हम उठते हैं कि चक्कर नहीं आता
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
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नज़्म
ख़्वाबों ख़यालों की अप्सरा
मगर वतन भी छुटा 'दौर' दिल की दिल में रही
ये बम्बई भी न हो ख़्वाब-ए-दीगराँ की तरह
दौर आफ़रीदी
ग़ज़ल
क्या काम इंक़लाब का कुछ भी नहीं यहाँ
दौर-ए-फ़लक के दौरा-ए-साग़र को इत्तिलाअ