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ग़ज़ल
कहा मैं ने कि 'नज़्म'-ए-मुब्तला मरता है हसरत में
कहा उस ने अगर मर जाए तो मेरा ज़रर क्या हो
नज़्म तबातबाई
ग़ज़ल
दे रही है उस की ख़ामोशी सदा-ए-दूर-बाश
ये नहीं कहता कि 'नज़्म'-ए-मुब्तला अच्छी तरह
नज़्म तबातबाई
ग़ज़ल
'नज्म' ये निशानी है अहल-ए-दिल की दुनिया में
हम को ख़ास निस्बत है ग़म की बारगाहों से