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ग़ज़ल
हमें ये ने'मत-ए-उज़मा-रसा न क्यों मिलती
ख़ुदा ने इश्क़ को पैदा किया बशर के लिए
नज़ीर मोहम्मद आरज़ू जयपुरी
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ग़ज़ल
कश्मकश अच्छी है लेकिन कश्मकश पैहम न हो
ने'मत-ए-उज़मा सुकूँ है गर सुकूँ बे-दम न हो
मोहन सिंह दीवाना
ग़ज़ल
ने'मत-ए-ग़म से जो दिल महरूम हो वो दिल नहीं
जाम ख़ाली हो तो क्यों कर उस को पैमाना कहें
कँवल एम ए
ग़ज़ल
मयस्सर हो तो क़द्रे लुत्फ़ भी नेमत है याँ यारो
किसी का वादा-ए-ऐश-ए-दवाम अच्छा नहीं लगता