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ग़ज़ल
उस नगरी के बाग़ और मन की यारो लैला न्यारी है
पंछी अपने सर पे उठा कर अपने बसेरे फिरते हैं
सय्यद आबिद अली आबिद
नज़्म
ये कश्मीर हमारा है
जन्नत ये न्यारी है अपनी
इस जन्नत पर हम ने अपने तन-मन-धन को वारा है
अर्श मलसियानी
नज़्म
जीवे जीवे पाकिस्तान
जीवे जीवे पाकिस्तान
महकी महकी रौशन रौशन प्यारी प्यारी न्यारी