aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "पकड़ना"
खड़ी धूप में अपने घर से निकलनावो चिड़ियाँ वो बुलबुल वो तितली पकड़ना
वो चिड़ियाँ वो बुलबुल वो तितली पकड़नावो गुड़ियों की शादी पे लड़ना झगड़ना
झूटी उम्मीद की उँगली को पकड़ना छोड़ोदर्द से बात करो दर्द से लड़ना छोड़ो
मंगल ने किसी क़दर दिलेर हो कर कहा “मैं कब कहता हूँ कि मैं भंगी नहीं हूँ लेकिन जब तक मुझे भी सवारी करने को न मिलेगी मैं घोड़ा न बनूँगा। तुम लोग सवार बनो और मैं घोड़ा ही बना रहूँगा।” सुरेश ने तहक्कुमाना लहजे में कहा। “तुझे घोड़ा बनना...
शायर और रचनाकार दो स्तर पर जीवन व्यतीत करते हैं एक वो जिसे भौतिक जीवन कहा जाता है और दूसरे वो जिसे उनकी काल्पनिक दुनिया और रचनात्मकता में महसूस किया जाता है । ये दूसरी ज़िंदगी उनकी अपनी होती है और उनकी काल्पनिक दुनिया में बसने वाले चरित्रों की भी । आबला-पाई पांव में फोड़ा और छाले पड़ना थका हुआ शायर के दूसरे जीवन का मुक़द्दर है । क्लासिकी शायरी में हमेशा प्रेमी को तबाह-ओ-बर्बाद होना होता है , वो जंगलों की धूल फाँकता है, बयाबानों की ख़ाक उड़ाता है ,गरेबान चाक करता है,यानी पागल-पन का दौरा पड़ता है । जुदाई और विरह की ये अवस्थाएं प्रेमी के लिए प्रेम और इश्क़ की बुलंदी होती हैं । उर्दू की आधुनिक शायरी में आबला-पाई इश्क़ और उसके दुख के रूपक के रूप में मौजूद है ।
अयादत पर की जाने वाली शायरी बहुत दिल-चस्प और मज़े-दार पहलू रखती है। आशिक़ बीमार होता है और चाहता है कि माशूक़ उस की अयादत के लिए आए। इस लिए वह अपनी बीमारी के तूल पकड़ने की दुआ भी मांगता है लेकिन माशूक़ ऐसा जफ़ा पेशा है कि अयादत के लिए भी नहीं आता। ये रंग एक आशिक़ का ही हो सकता है कि वो सौ-बार बीमार पड़ने का फ़रेब करता है लेकिन उस का मसीह एक बार भी अयादत को नहीं आता। ये सिर्फ़ एक पहलू है इस के अलावा भी अयादत के तहत बहुत दिल-चस्प मज़ामीन बाँथे गए हैं। हमारा ये इन्तिख़ाब पढ़िए।
पकड़नाپکڑنا
Take
परिंदा पकड़ने वाली गाड़ी
ग़यास अहमद गद्दी
हाथ में आड़ी तेग़ पकड़ना ताकि लगे भी ज़ख़्म तो ओछाक़स्द कि फिर जी भर के सताएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने
आज बचपन कहीं बस्तों में ही उलझा है 'सहाब'फिर वो तितली को पकड़ना वो उड़ाना आए
छुट्टन बेटे! चाय पी ली तुमने? ज़रा जाना तो अपने इन हम-साए मीर बाक़िर अली के घर। कहना अब्बा ने सलाम कहा है और पूछा है आपकी टांग अब कैसी है और कहियो, वो जो है न आपके पास, किया नाम है उसका, ए लो भूल गया, पलवल था कि...
ये कह कर शाहिदा ने सलमा का मुँह चूम लिया और फिर अपने ख़ाविंद की तारीफ़ें शुरू कर दीं। सलमा तंग आ गई। उसने थोड़ी देर के बाद कोई बहाना बना कर रुख़्सत चाही और बस स्टैंड पर पहुंच गई जहां उसे ए रूट की बस पकड़ना थी। वो जब...
मगर बाबू हरगोपाल के सामने उसकी कोई पेश न चली और उसे साथ देना ही पड़ा। जैसी कि उम्मीद थी, चार पैग पीने के बाद बाबू हरगोपाल ने हामिद से कहा, “लो भई अब चलें घूमने। मगर देखो कोई ऐसी टैक्सी पकड़ना जो ज़रा शानदार हो। प्राईवेट टैक्सी हो तो...
भरी धूप में वो पतंगें पकड़ना''वो बातों ही बातों में लड़ना झगड़ना''
शौकत को चूहे पकड़ने में बहुत महारत हासिल है। वो मुझसे कहा करता है, ये एक फ़न है जिसको बाक़ायदा सीखना पड़ता है और सच पूछिए तो जो जो तरकीबें शौकत को चूहे पकड़ने के लिए याद हैं, उनसे यही मालूम होता है कि उसने काफ़ी मेहनत की है। अगर...
बाज़ लोगों का ख़्याल है कि वो बड़ी उदास ज़िंदगी बसर करता होगा। ये ख़्याल बिलकुल ग़लत है। जैसे पक्के घड़े पर पानी का कोई असर नहीं होता उसी तरह इन तमाम वाक़आत ने भगत राम की फ़ितरत पर कोई असर नहीं किया। उसकी सरिश्त में कोई भी तब्दीली वाक़ेअ...
चची बोलीं, "चले होतो किसी के झगड़े में न पड़ना।" चचा बोले, "मेरा सर भरा है। बाज़ारी लोगों के झगड़े से हमें क्या सरोकार।"...
हमें वहां खड़े खड़े काफ़ी देर हो गई। हमने सारी रात वहां गुज़ारने का फ़ैसला किया। हमने सारी रात उस लड़की के लिए दुआएं कीं। बस हम उसके लिए कच्ची पक्की दुआएं करते रहे। सुबह चलते हुए मैंने अपनी बीवी से कहा कि जब तक पंजाब का दुपट्टा शाह अब्दुल...
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