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नज़्म
पत-झड़
ये रक़्स-ए-आफ़रीनश है कि शोर-ए-मर्ग है ऐ दिल
हवा कुछ इस तरह पेड़ों से मिल मिल कर गुज़रती है
उबैदुर्रहमान आज़मी
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ग़ज़ल
पेड़ पत-झड़ में लहू रोते हैं अफ़्सुर्दा न हो
शाख़ में नम है तो फिर मौसम-ए-गुल दूर नहीं
ज़िया जालंधरी
ग़ज़ल
गले लग कर मैं रोया था सभी पेड़ों से पत-झड़ में
सो मुझ से गुफ़्तुगू करने लगे अश्जार चुपके से