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ग़ज़ल
चराग़ शर्मा
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ग़ज़ल
पस-ए-चराग़ मैं जो सम्तें ढूँडता रहा 'तुर्क'
वो एक लफ़्ज़ के दौरान में पड़ी हुई थीं
ज़ियाउल मुस्तफ़ा तुर्क
ग़ज़ल
न रहा धुआँ न है कोई बू लो अब आ गए वो सुराग़-जू
है हर इक निगाह गुरेज़-ख़ू पस-ए-इश्तिआ'ल के दरमियाँ