aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "पहाड़ी"
हाशमी पब्लिकेशन, पहाड़ी भोजला, दिल्ली
पर्काशक
चढ़ते चढ़ते किसी पहाड़ी परअब वो करवट बदल रही होगी
इस तअल्लुक़ से निकलने का कोई रास्ता देइस पहाड़ी पे भी बारूद लगाना न पड़े
उसने जवानों को दो तीन मर्तबा ख़ामोश रहने के लिए कहा, मगर गालियां ही कुछ ऐसी थीं कि जवाब दिए बिना इंसान से नहीं रहा जाता था।दुश्मन के सिपाही नज़र से ओझल थे। रात को तो ख़ैर अंधेरा था, मगर वो दिन को भी नज़र नहीं आते थे। सिर्फ़ उनकी गालियां नीचे पहाड़ी के क़दमों से उठती थीं और पत्थरों के साथ टकड़ा टकड़ा कर हवा में हल हो जाती थीं।
ओ देस से आने वाले बताक्या अब भी पहाड़ी चोटियों पर
सितंबर का अंजाम अक्तूबर के आग़ाज़ से बड़े गुलाबी अंदाज़ में बग़लगीर हो रहा था। ऐसा लगता था कि मौसम-ए-सरमा और गर्मा में सुलह-सफ़ाई हो रही है। नीले-नीले आसमान पर धुनकी हुई रुई ऐसे पतले-पतले और हल्के -हल्के बादल यूं तैरते थे जैसे अपने सफ़ेद बजरों में तफ़रीह कर रहे हैं।पहाड़ी मोर्चों में दोनों तरफ़ के सिपाही कई दिन से बड़ी कोफ़्त महसूस कर रहे थे कि कोई फ़ैसलाकुन बात क्यों वक़ूअ पज़ीर नहीं होती। उकता कर उनका जी चाहता था कि मौक़ा-बे-मौक़ा एक दूसरे को शेअर सुनाएँ। कोई न सुने तो ऐसे ही गुनगुनाते रहें।
पहाड़ीپہاڑی
Mountainous
गूजरी पहाड़ी लोक गीत
ग़ुलाम हुसैन अज़हर
लोक गीत
प्यारी सी पहाड़ी लड़की
मसूद अहमद बरकाती
अनुवाद
पहाड़ की चोटी पर
मिर्ज़ा अदीब
नॉवेल / उपन्यास
पहाड़ मु़झे बुलाता है
अकबर हमीदी
लेख
पंहारी
कहीं वो प्यार कहीं वो प्रीतपहाड़ी झरनों के संगीत
अगर तुम मेरी तमाम तहरीरों को पेश-ए-नज़र रख लेते तो तुम्हें ये ग़लतफ़हमी हर्गिज़ न होती कि मैं कश्मीर में एक सादा लौह लड़की से खेलता रहा हूँ। मेरे दोस्त तुमने मुझे सदमा पहुंचाया है।वज़ीर कौन थी? इसका जवाब मुख़्तसर यही हो सकता है कि वो एक देहाती लड़की थी। जवान और पूरी जवान! उस पहाड़ी लड़की के मुतअ’ल्लिक़ जिसने मेरी किताब-ए-ज़िंदगी के कुछ औराक़ पर चंद हसीन नुक़ूश बनाए हैं। मैं बहुत कुछ कह चुका हूँ।
ब्रीच कनेडी के हस्पताल में सेहतयाब हो कर ख़ुरशीद आलम के अब्बा मियां ख़ुश-ख़ुश प्रताब गढ वापस जा चुके हैं, जब तक कमबाला हिल वाला फ़्लैट तैयार नहीं हुआ जो दुल्हन को जहेज़ में मिला था, शादी के बाद दुल्हा मियां ससुराल ही में रहे, अक्सर वो सुबह को दफ़्तर जाने से पहले बालकनी में जा कर खड़े होते। नीचे पहाड़ के घने बाग़ में गुज़रती बल खाती सड़क बुर्ज ख़मोशां की त...
“हाय आप तो समझते ही नहीं। अब मैं क्या झूट बोलती हूँ। मैं ख़ुद थोड़ा ही उनके पास जाती हूँ और मुँह बढ़ा कर चूमने को कहती हूँ। अगर आप उस रोज़ मेरे बालों को चूमना चाहते जबकि आप इन की तारीफ़ कर रहे थे, तो क्या मैं इनकार कर देती? मैं किस तरह इनकार कर सकती हूँ, मुझे छल्लां बहुत प्यारी लगती है और मैं हर रोज़ उसको चूमती हूँ। इसमें क्या हर्ज है। मैं चाहती हूँ कि...
इकराम साहब हैरान थे कि बटोत जैसी ग़ैरआबाद और ग़ैर दिलचस्प देहात में पड़े रहने से मेरा क्या मक़सद है। वो ऐसा क्यों सोचते थे? इसकी वजह मेरे ख़याल में सिर्फ़ ये है कि उनके पास सोचने के लिए और कुछ नहीं था। चुनांचे वो इसी मसले पर ग़ौर-ओ-फ़िक्र करते रहते थे।वज़ीर का घर उनके बंगले के सामने बलंद पहाड़ी पर था और जब उन्होंने अपने नौकर की ज़बानी ये सुना कि मैं इस पहाड़ी लड़की के साथ पहरों बातें करता रहता हूँ। तो उन्होंने ये समझा कि मेरी दुखती हुई रग उनके हाथ आगई है और उन्होंने एक ऐसा राज़ मालूम कर लिया है जिसके इफ़्शा पर तमाम दुनिया के दरवाज़े मुझ पर बंद हो जाऐंगे। लोगों से जब वो इस मसले पर बातें करते थे तो ये कहा करते थे मैं तअ’य्युश पसंद हुँ और एक भोली भाली लड़की को फांस रहा हूँ और एक बार जब उन्होंने मुझसे बात की तो कहा, “देखिए ये पहाड़ी लौंडिया बड़ी ख़तरनाक है। ऐसा न हो कि आप उस के जाल में फंस जाएं।”
जब शांति ने पति व्रता स्त्री की तरह उठ कर नीलम का मेकअप करना चाहा तो उसने कोई मुज़ाहमत पेश न की। ईदन बाई ने एक बेजान लाश को सहारा देकर उठाया और जब शांति ने निहायत ही ग़ैर सनआ’ना तरीक़ पर उसके होंटों पर लिपस्टिक लगाना शुरू की तो वो मेरी तरफ़ देख कर मुस्कुराई... नीलम की ये मुस्कुराहट एक ख़ामोश चीख़ थी।मेरा ख़याल था... नहीं, मुझे यक़ीन था कि एक दम कुछ होगा... नीलम के भिंचे हुए होंट एक धमाके के साथ वा होंगे और जिस तरह बरसात में पहाड़ी नाले बड़े बड़े मज़बूत बंद तोड़ कर दीवानावार आगे निकल जाते हैं, उसी तरह नीलम अपने रुके हुए जज़्बात के तूफ़ानी बहाव में हम सबके क़दम उखेड़ कर ख़ुदा मालूम किन गहराईयों में धकेल ले जाएगी। मगर तअ’ज्जुब है कि वो बिल्कुल ख़ामोश रही। उसके चेहरे की दर्द अंगेज़ ज़र्दी ग़ाज़े और सुर्ख़ी के गुबार में छुपती रही और वो पत्थर के बुत की तरह बेहिस बनी रही।
उदासी पत-झड़ों की शाम ओढ़े रास्ता तकतीपहाड़ी पर हज़ारों साल की कोई इमारत सी
इतने में मेरा मकान क़रीब आया और मैं ख़ुदा-हाफ़िज़ कह कर घर चला गया। मुझे ये मालूम न था कि सी.आई.डी वालों को दिन की कारगुज़ारी की रिपोर्ट दूसरे रोज़ सुबह-सवेरे दफ़्तर में देनी पड़ती है और अगर रिपोर्ट न दी गई तो जवाब-तल्बी होती है।हेड-कांस्टेबल साहब भी दिन की कारगुज़ारी में कुछ न कुछ दिखाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने घर जा कर हुकूमत के सदर मुक़ाम में एक ग़ैर-मुल्की जासूस की आमद की रिपोर्ट इस तरह दी कि दूसरे रोज़ मौज दीन, पान फ़रोशी के लिए चूना-कत्था ख़रीदता हुआ गिरफ़्तार किया गया। पान, चूना, कत्था वग़ैरा भी उसकी जासूसी की एक कड़ी बन गई और सी.आई.डी वालों ने मज़ीद रिपोर्ट दे दी कि “जासूस” चूँकि पान खाने का आदी है, इसलिए ये स्टाक ख़रीद कर हमारी फ़ौजों की पिकटों की पोज़ीशन देखने पहाड़ी इलाक़ों में जा रहा है।
पहले भी मैं लोगों से बोल-चाल बहुत कम रखती थी। सरला वग़ैरह का गिरोह अब मुझे ऐसी नज़रों से देखता गोया मैं मिर्रीख़ से उतर कर आई हूँ या मेरे सर पर सींग हैं। डाइनिंग हाल में मेरे बाहर जाने के बा'द घंटों मेरे क़िस्से दोहराए जाते। अपनी इंटेलिजेंस सर्विस के ज़रीए’ मेरे और ख़ुशवक़्त सिंह के बारे में उनको पल-पल की ख़बर रहती। हम लोग शाम को कहाँ गए... रात नई दिल्...
उसके बाद विल्सन से मुतअद्दिद बार मुलाक़ात हुई, उसकी बातें बड़ी दिलचस्प होतीं। वो इस जज़ीरे के चप्पे-चप्पे से वाक़िफ़ था।एक दिन चांदनी रात का लुत्फ़ उठाने के बाद, मैंने और मेरे दोस्त ने सोचा कि चलो मोंटी सलावर की पहाड़ी की सैर करें। मैंने विल्सन से कहा कि, “आओ यार, तुम भी हमारे साथ चलो।”
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