aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "बेवफ़ाई"
अदावतें थीं, तग़ाफ़ुल था, रंजिशें थीं बहुतबिछड़ने वाले में सब कुछ था, बेवफ़ाई न थी
हम से क्या हो सका मोहब्बत मेंख़ैर तुम ने तो बेवफ़ाई की
किसी की बेवफ़ाई सेकिसी दुख इंतिहाई से
मिलते रहिए इसी तपाक के साथबेवफ़ाई की इंतिहा कीजे
न जाने क्या है किसी की उदास आँखों मेंवो मुँह छुपा के भी जाए तो बेवफ़ा न लगे
वफ़ा पर शायरी भी ज़्यादा-तर बेवफ़ाई की ही सूरतों को मौज़ू बनाती है। वफ़ादार आशिक़ के अलावा और है कौन। और ये वफ़ादार किरदार हर तरफ़ से बे-वफ़ाई का निशाना बनता है। ये शायरी हमको वफ़ादारी की तर्ग़ीब भी देती है और बेवफ़ाई के दुख झेलने वालों के ज़ख़्मी एहसासात से वाक़िफ़ भी कराती है।
इश्क़ की किताब के हर वरक़ पर वफ़ा के क़िस्से ही नहीं होते बेवफ़ाई की दास्तानें भी होती हैं। प्रेम कहानियों के कई किरदार महबूब की बेवफ़ाई ने रचे हैं। शायरी में ऐसी बेवफ़ाई का ज़िक्र जा-ब-जा मौजूद है जिसे पढ़कर कोई भी शख़्स उदास या ग़मज़दा हो सकता है। बेवफ़ाई शायरी दुख-दर्द और गिले-शिकवे की ऐसी शायरी है जिसे हारे हुए लोगों ने अपना दुख कम करने के लिए पढ़ा है। इनकी मिठास आप भी महसूस कर सकते हैं इस चयन के साथः
बेवफ़ाईبے وفائی
faithlessness, treachery
इक अजब हाल है कि अब उस कोयाद करना भी बेवफ़ाई है
चला था ज़िक्र ज़माने की बेवफ़ाई कासो आ गया है तुम्हारा ख़याल वैसे ही
बेवफ़ाई पे तेरी जी है फ़िदाक़हर होता जो बा-वफ़ा होता
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई कीआज पहली बार उस से मैं ने बेवफ़ाई की
नहीं शिकवा मुझे कुछ बेवफ़ाई का तिरी हरगिज़गिला तब हो अगर तू ने किसी से भी निभाई हो
आशिक़ी में बहुत ज़रूरी हैबेवफ़ाई कभी कभी करना
माधव दर्दनाक लहजे में बोला, “मरना ही है तो जल्दी मर क्यूँ नहीं जाती। देख कर क्या आऊँ।” “तू बड़ा बे-दर्द है बे! साल भर जिसके साथ जिंदगानी का सुख भोगा उसी के साथ इतनी बेवफाई।”...
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