aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "बे-नौकरी"
शिकवा जो बे-नौकरी का करते हैं नादान हैंआप आक़ा है किसी का जो कोई नौकर नहीं
साइमन के आते ही रेशम दबे-पाँव चलती हुई आकर खुर-खुर करने लगती और वो फ़ौरन जेब से रूमाल निकाल कर उसे कुछ खाने को देते। शाम के वक़्त जब फ़क़ीरा उनके लिए चाय की कश्ती लेकर बरामदे में जाता तो वो आधी चाय तश्तरी में डाल कर फ़र्श पर रख...
ऐसा नहीं कि ज़िंदगी ही राएगाँ हुईइस शाइरी के फ़न से तो बस नौकरी गई
सारी इज़्ज़त नौकरी से इस ज़माने में है 'मेहर'जब हुए बे-कार बस तौक़ीर आधी रह गई
परवाना नौकरी का कहीं से मिले भी 'चोंच'बे-रोज़गार बैठे रहे इंतिज़ार में
मशहूर शाइ’र जो मुशाइ’रों से दूर रहे। अगरा में पैदाइश। पहले सरकारी नौकरी की और फिर कई व्यवसायिक संस्थाओं से जुड़े रहे।आज़ादी के बा’द कराची जा बसे।उ’मर ख़य्याम और मिर्ज़ा‘ ग़ालिब’ की रुबाइयों का उर्दू अनुवाद किया।मर्सिये भी लिखे।
बे-नौकरीبے نوکری
jobless
जल्द से जल्द अपने घर में नौकरी दे दो मुझेवर्ना बे-क़ीमत का नौकर ढूँडती रह जाओगी
ऐसे लगे है नौकरी माल-ए-हराम के बग़ैरजैसे हो 'दाग़' की ग़ज़ल बादा ओ जाम के बग़ैर
इक नौकरी की आस में कितने ही मर गएमैं भी तो मरने के ही लिए बे-क़रार हूँ
जो मेरे दिल में फ़रोज़ाँ है शाइरी की तरहमैं उस को ढूँढता फिरता हूँ नौकरी की तरह
नौकरी पे बस नहीं जाँ पे तो होगाअब वो कोई काम करना चाहता है
छत न हम पर कोई गिरी साहबकोई ने'मत है बे-घरी साहब
जहाँ में अभी यूँ तो क्या क्या न होगाज़मीं पर कोई तुम सा पैदा न होगा
हसीनों से तुम्हारी दोस्ती अच्छी नहीं लगतीबुढ़ापे में ये इश्क़-ओ-आशिक़ी अच्छी नहीं लगती
इस तरह तो लग रहा है चाँद भी ख़तरे में हैउस से मिल कर मैं ने जाना रौशनी ख़तरे में है
यूँ तो मेरी ज़ात हर पल दर-ब-दर होती रहीआँख लेकिन सहन-ए-हुस्न-ए-यार पर रक्खी रही
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