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नज़्म
साक़ी
अजम बे-बहरा-ए-ईमाँ अरब बे-बहरा-ए-दानिश
ब-ईं-आग़ाज़ दोनों का बुरा अंजाम है साक़ी
शमीम फ़ारूक़ बांस पारी
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ग़ज़ल
हुआ तारी जुमूद आफ़ाक़ के रंगीं इशारों पर
हुई गर्दिश से बे-बहरा ज़मीं आहिस्ता आहिस्ता
रुख़्साना निकहत लारी उम्म-ए-हानी
नज़्म
ए'तिराफ़-ए-हक़ीक़त
ए'तिराफ़ अपनी जगह हुस्न है तक़्सीर नहीं
आप बे-बहरा है जो मो'तक़िद-ए-'मीर' नहीं
हिलाल रिज़वी
शेर
शुबह 'नासिख़' नहीं कुछ 'मीर' की उस्तादी में
आप बे-बहरा है जो मो'तक़िद-ए-'मीर' नहीं
इमाम बख़्श नासिख़
नज़्म
कुछ दे इसे रुख़्सत कर
इस बात पे क्यूँ इस की इतना भी हिजाब आए
फ़रियाद से बे-बहरा कश्कोल से ख़ाली है
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
शेर में 'इक़बाल' का शैदा है 'ग़ालिब' का असीर
'हामिद'-ए-बे-बहरा-गो मुंकिर नहीं है मीर का
सय्यद हामिद
नज़्म
रौशनी के मीनार
किस ख़ता पर वो जवाँ क़त्ल हुआ
कितने बे-बहरा थे तहज़ीब से इस शहर के लोग
मुनीबुर्रहमान
ग़ज़ल
हम से बे-बहरा हुई अब जरस-ए-गुल की सदा
वर्ना वाक़िफ़ थे हर इक रंग की झंकार से हम