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ग़ज़ल
उधर वो बे-मुरव्वत बेवफ़ा बे-रहम क़ातिल है
इधर बे-सब्र-ओ-बे-तसकीन-ओ-बे-ताक़त मिरा दिल है
वलीउल्लाह मुहिब
ग़ज़ल
दिल-ए-ख़ूनीं-जिगर बे-सब्र-ओ-फ़ैज़-ए-इश्क़-ए-मुस्तग़नी
इलाही यक क़यामत ख़ावर आ टूटे बदख़्शाँ पर
मिर्ज़ा ग़ालिब
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ग़ज़ल
चारागर नासेह-ए-मुश्फ़िक़ दिल-ए-बे-सब्र-ओ-क़रार
जो मिला इश्क़ में ग़म-ख़्वार वो नादाँ निकला
फ़ानी बदायुनी
नज़्म
दो इश्क़
अब चमकेगा बे-सब्र निगाहों का मुक़द्दर
इस बाम से निकलेगा तिरे हुस्न का ख़ुर्शीद
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
बुल-हवस दिल को कर अपने ज़रा बस में 'हसरत'
मर्द-ए-बे-सब्र तुझे कुछ भी जिगर है कि नहीं
हसरत अज़ीमाबादी
ग़ज़ल
मैं ही कुछ बे-सब्र-ओ-ताक़त इश्क़ में उस के नहीं
दिल भी अब बे-ताक़ती से काम फ़रमाने लगा