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ग़ज़ल
ब-रंग-ए-बाद-ए-सबा गुल खिलाए हैं क्या क्या
मिरे ही दिल ने सितम मुझ पे ढाए हैं क्या क्या
मुनव्वर लखनवी
शेर
अल्लाह रे ज़ौक़-ए-दश्त-नवर्दी कि बाद-ए-मर्ग
हिलते हैं ख़ुद-ब-ख़ुद मिरे अंदर कफ़न के पाँव