aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "भड़कना"
ग़ज़ल से भड़कनामिरा इक मा’मूल सा हो गया था
ख़ुद ही रख आते दिया दीवार परऔर फिर उस का भड़कना देखते
उस्लूबियात का काम बस इस क़दर है कि वो लिसानी इम्तियाज़ात की हतमी तौर पर निशान-देही कर दे। उनकी जमालियाती तअय्युन क़दर अदबी तन्क़ीद का काम है। इसकी तवक़्क़ो अदबी तन्क़ीद से करना चाहिए न कि उस्लूबियात से। रही ये बात कि उस्लूबियात और अदबी तन्क़ीद में क्या रिश्ता है तो इसको में इससे पहले भी कई बार वाज़ेह कर चुका हूँ कि उस्लूबियात अदबी तन्क़ीद का बदल नही...
तजरबात का ये जदल्लियाती तर्ज़-ए-‘अमल जब ब-ज़री’आ-ए-ज़बान, अदब में मुन’अकिस होता है तो वो अपने ‘अक्स में तजरबे की जदल्लियाती तर्ज़-ए-‘अमल को भी पेश करता है। क्योंकि बग़ैर उसके अस्ल तजरबे को मुन्तक़िल करना मुम्किन नहीं और अस्ल तजरबा हमेशा ज़ेह्नी तस्वीरों ही की सूरत में मुन्तक़िल किया जा सकता है। आर्ट में ज़ेह्नी तस्वीरों को इसी वज्ह से बुनियादी जगह ...
कैफ़ियत दिल की अगर तू ने दिखाई मुझ कोआइने फिर तो मिरा तुझ पे भड़कना तय है
भड़कनाبھڑکنا
ignited
शम्अ की सूरत बज़्म में जलनागाह भड़कना गाह पिघलना
शो'ला-ए-जाँ का भड़कना देख करअच्छे-अच्छों का कलेजा हिल गया
उस की तक़दीर तो भड़कना हैशो'ला ज़ेर-ए-नक़ाब क्या रखना
जो बढ़ करभड़कना उन को सिखा रही है
ख़ून, ईशर सिंह के गले से उड़ उड़ कर उसकी मूंछों पर गिर रहा था, उसने अपने लर्ज़ां होंट खोले और कुलवंत कौर की तरफ़ शुक्रिए और गिले की मिली जुली निगाहों से देखा, “मेरी जान! तुम ने बहुत जल्दी की... लेकिन जो हुआ ठीक है।”कुलवंत कौर का हसद फिर भड़का, “मगर वो कौन है तुम्हारी माँ?”
मैं ख़ुद में झेंकता हूँ और सीने में भड़कता हूँमिरे अंदर जो है इक शख़्स मैं उस में फड़कता हूँ
भड़का रहे हैं आग लब-ए-नग़्मागर से हमख़ामोश क्या रहेंगे ज़माने के डर से हम
रंग-ए-महफ़िल चाहता है इक मुकम्मल इंक़लाबचंद शम्ओं के भड़कने से सहर होती नहीं
“मेरी माँ का सर... तू होता कौन है मुझसे ऐसे सवाल करने वाला... भाग यहां से, वर्ना...”सौगंधी की बुलंद आवाज़ सुन कर उसका ख़ारिश ज़दा कुत्ता जो सूखे हुए चप्पलों पर मुँह रखे सो रहा था, हड़बड़ा कर उठ बैठा और माधव की तरफ़ मुँह उठा कर भोंकना शुरू कर दिया। कुत्ते के भौंकने के साथ ही सौगंधी ज़ोर से हँसने लगी।
इस गुल-कदा-ए-पारीना में फिर आग भड़कने वाली हैफिर अब्र गरजने वाले हैं फिर बर्क़ कड़कने वाली है
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