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ग़ज़ल
रक़ीबाँ की न कुछ तक़्सीर साबित है न ख़ूबाँ की
मुझे नाहक़ सताता है ये इश्क़-ए-बद-गुमाँ अपना
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
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ग़ज़ल
'असद' ज़िंदानी-ए-तासीर-ए-उल्फ़त-हा-ए-ख़ूबाँ हूँ
ख़म-ए-दस्त-ए-नवाज़िश हो गया है तौक़ गर्दन में
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
प्रोग्रैम
और रात को वो ख़ल्वती-ए-काकुल-ओ-रुख़सार
बज़्म-ए-तरब-ओ-कूचा-ए-ख़ूबाँ में मिलेगा
जोश मलीहाबादी
नज़्म
गुरेज़
ये जा कर कोई बज़्म-ए-ख़ूबाँ में कह दो
कि अब दर-ख़ोर-ए-बज़्म-ए-ख़ूबाँ नहीं मैं
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
असीर-ए-हल्क़ा-ए-गेसू-ए-ख़ूबाँ हो नहीं सकता
वो दिल तू जिस को तस्कीं दे परेशाँ हो नहीं सकता
तिलोकचंद महरूम
नज़्म
इशरत-ए-तन्हाई
मैं हमा-शौक़-ओ-मोहब्बत वो हमा-लुत्फ़-ओ-करम
मरकज़-ए-मर्हमत-ए-महफ़िल-ए-ख़ूबाँ हूँ मैं