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ग़ज़ल
कोई है महव-ए-ऐश-ओ-तलबगार-ए-ज़िंदगी
कोई है शिकवा-संज-ओ-गिराँ-बार-ए-ज़िंदगी
बशीरून्निसा बेगम बशीर
ग़ज़ल
शबिस्तान-ए-मुसर्रत में जो महव-ए-ऐश-ओ-इशरत हैं
उन्हें इस का पता क्या रहरव-ए-मंज़िल पे क्या गुज़री
शाग़िल क़ादरी
शायरी के अनुवाद
अभी बेदार हैं हम आओ महव-ए-‘ऐश हो जाएँ
बस इक मीठी सी मदहोशी में ही इस दर्जा क़ुव्वत है
ली बाई
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ग़ज़ल
ख़याल-ए-यार में हो महव-ए-बे-ख़ुदी ऐसा
मुझे ख़बर नहीं दिल क्या है और जिगर क्या है
हकीम आग़ा जान ऐश
ग़ज़ल
कि याद रख तू है शे'रों में ऐब रब्त-ए-कलाम
वो शे'र हों कि न हरगिज़ सुख़न सुख़न से मिले