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ग़ज़ल
ऐ दिल-ए-'मानी' यूँही मंज़िल कभी मिलती नहीं
राह-ए-उल्फ़त में दिया करते हैं नज़राना कोई
इमराना मुशताक़ मानी
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ग़ज़ल
ठिकाना फिर ग़म-ए-दुनिया ने पाया बा'द मुद्दत के
कि अपने होश में फिर 'मानी'-ए-दीवाना आता है
मानी जायसी
ग़ज़ल
मिरी हर साँस गोया एक गाम-ए-सई है 'मानी'
ये मैं जीता नहीं मसरूफ़ हूँ क़त्अ-ए-मनाज़िल में