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ग़ज़ल
जो चाहो सैर-ए-दरिया वक़्फ़ है मुझ चश्म की कश्ती
हर एक मू-ए-पलक मेरा है गोया घाट ख़ैराती
नाजी शाकिर
मर्सिया
अबरो की मह-ए-नौ में न जुंबिश है न ज़ौ है
इक शब वो मह-ए-नौ है ये हर शब मह-ए-नौ है
मिर्ज़ा सलामत अली दबीर
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ग़ज़ल
करे क्या साज़-ए-बीनिश वो शहीद-ए-दर्द-आगाही
जिसे मू-ए-दिमाग़-ए-बे-ख़ुदी ख़्वाब-ए-ज़ुलेख़ा हो
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
मू-ए-आतिश-दीद साँ बल खाए वो मू-ए-कमर
मैं जो लिक्खूँ गर्म मज़मूँ उस तिलाई डाब का
मुनीर शिकोहाबादी
ग़ज़ल
तकलीफ़-ए-तकल्लुफ़ से किया इश्क़ ने आज़ाद
मू-ए-सर-ए-शोरीदा हैं क़ाक़ुम से ज़ियादा
इमाम बख़्श नासिख़
ग़ज़ल
बस-कि हूँ 'ग़ालिब' असीरी में भी आतिश ज़ेर-ए-पा
मू-ए-आतिश दीदा है हल्क़ा मिरी ज़ंजीर का
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
तकलीफ़-ए-तकल्लुफ़ से किया इश्क़ ने आज़ाद
मू-ए-सर-ए-शोरीदा हैं क़ाक़ुम से ज़ियादा