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ग़ज़ल
चली ख़िरद की न कुछ आगही ने साथ दिया
रह-ए-जुनूँ में फ़क़त बे-ख़ुदी ने साथ दिया
सय्यदा शान-ए-मेराज
ग़ज़ल
जब निगाहें उठ गईं अल्लाह-री मेराज-ए-शौक़
देखता क्या हूँ वो जान-ए-इंतिज़ार आ ही गया
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
यूँ तो इख़्लास में इस के कोई धोका भी नहीं
कब बदल जाए मगर इस का भरोसा भी नहीं