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ग़ज़ल
मौज-ए-निकहत की सबा देख सवारी तय्यार
ख़ार से की है गुल-ए-तर ने कटारी तय्यार
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
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नज़्म
अलीगढ़ यूनिवर्सिटी
राह दुश्वार में इक क़ाफ़िला-ए-निकहत-ओ-नूर
संग-ए-ख़ारा की चटानों के मुक़ाबिल है खड़ा
अंजुम आज़मी
ग़ज़ल
तिरा दर्द 'बज़्मी'-ए-ना-तवाँ न इधर सुना न उधर सुना
कि दयार-ए-निकहत-ओ-नूर से तिरे ग़म-गुसार चले गए
सरफ़राज़ बज़्मी
ग़ज़ल
ज़िंदगी के दामन में रंग-ओ-नूर-ओ-निकहत क्या
ख़्वाब ही तो देखा है ख़्वाब की हक़ीक़त क्या