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हिंदी ग़ज़ल
हम ग़रीबों का तअल्लुक़ रंग-महलों से कहाँ
खेतियों से वास्ता क्या शहर की बरसात को
सतीश बलराम अग्नीहोत्री
ग़ज़ल
अना के रंग-महलों में वो जोगन बन के बैठी है
जिसे बस्ती के सारे लोग शहज़ादी समझते हैं
कलीम क़ैसर बलरामपुरी
नज़्म
मुशाहिदात
रंग-महलों में ग़ज़ल-ख़्वाँ हैं अमीरन-ए-किबार
ख़ाक पर फ़ाक़ा-कशों को नौहागर पाता हूँ मैं