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ग़ज़ल
इक शम'-ए-ग़म तो दिल में ही बस जल रही थी दोस्त
ये ज़िंदगी तो ऐसे भी बस चल रही थी दोस्त
मीनाक्षी राज
ग़ज़ल
हुई मुद्दत सुकून-ए-दिल 'कँवल' जाता रहा अपना
बहुत महँगी पड़ी है ज़िंदगी से दोस्ती मुझ को
डी. राज कँवल
ग़ज़ल
ख़ुलूस-ए-दिल है बड़ी चीज़ ज़िंदगी के लिए
ज़रा से ग़म में गरेबाँ को तार तार न कर