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ग़ज़ल
नरेश एम. ए
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ग़ज़ल
पुर्सान-ए-हाल कब हुई वो चश्म-ए-बे-नियाज़
जब भी गिरे हैं ख़ुद ही सँभलते रहे हैं हम
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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पुर्सान-ए-हाल कब हुई वो चश्म-ए-बे-नियाज़
जब भी गिरे हैं ख़ुद ही सँभलते रहे हैं हम