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ग़ज़ल
ज़ाहिर है तिरी नर्गिस-ए-मख़मूर से मस्ती
टपके है तिरे लाल-ए-मय-आशाम से लज़्ज़त
आफ़ताब शाह आलम सानी
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ग़ज़ल
है सुरूर-ए-बादा-ए-रंगीं सुख़न-साज़ी मेरी
मौज-ए-बहर-ए-मय है 'शो'ला' शे'र मस्ताना मेरा
मुंशी बनवारी लाल शोला
ग़ज़ल
तुम बाग़ में जाते हो तो गुल खिलते हैं क्या क्या
फूलों को तुम्हारे रुख़-ए-ज़ेबा से ग़रज़ क्या
शंकर लाल शंकर
ग़ज़ल
सज्दे करते हैं ख़ुम-ए-मय को वुफ़ूर-ए-नश्शा में
सूरत मीना-ए-मय मद्दाह शान-ए-मय-फ़रोश