aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "लोटने"
मगर बेगम जान से शादी कर के तो वो उन्हें कुल साज़-ओ-सामान के साथ ही घर में रख कर भूल गए और वो बेचारी दुबली पतली नाज़ुक सी बेगम तन्हाई के ग़म में घुलने लगी। न जाने उनकी ज़िंदगी कहाँ से शुरू होती है। वहाँ से जब वो पैदा होने...
माई कफ़न को सर की चादर में छिपा कर बाहर आई तो चौधरी फ़त्हदीन का कुत्ता भागता हुआ आया और उसके क़दमों में लोटने लगा। उसके अंदाज़ से मा'लूम होता था कि वो हँस नहीं सकता वर्ना ख़ूब=ख़ूब हँसता। “चल हट।”, माई ने उसे डाँटा,“मेरे नमाज़ी कपड़े पलीद न कर।”...
बात पक्की हो गई और शादी का सामान होने लगा। ठाकुर साहब उन अस्हाब में से थे जिन्हें अपने ऊपर भरोसा नहीं होता। उनकी निगाह में प्रकाश की डिग्री अपने साठ साला तजर्बे से ज़्यादा कीमती थी। शादी का सारा इन्तिज़ाम प्रकाश के हाथों में था, दस बारह हज़ार रुपये...
जब तक कॉलेज सर पर सवार रहा पढ़ने-लिखने से फ़ुर्सत ही ना मिली जो अदब की तरफ़ तवज्जोह की जाती और कॉलेज से निकल कर बस दिल में यही बात बैठ गई कि हर चीज़ जो दो साल पहले लिखी गई बोसीदा, बद-मज़ाक़ और झूठी है। नया अदब सिर्फ़ आज...
ताजपोशी की तस्वीरें क्लिक क्लिक कर खिंचने लगीं तो मुझे ये फिक्र लाहक़ हुई कि अगर ख़ुदा न-ख़्वास्ता ये पंजाब के अख़बारों में छप गई तो लोग कहेंगे कि कराची के अह्ल-ए-ज़बान हज़रात बुज़ुर्गों के साथ दुल्हनों का सुलूक करते हैं और अ'रूसी ज़ेवरात के इस्तेमाल में तज़कीर-ओ-तानीस का ज़रा...
सफ़र में रहबर का किरदार हमेशा मशकूक रहा है। क़ाफ़िले के लुटने के पीछे रहबर की दग़ाबाज़ियाँ तसव्वुर की गई हैं। शायरों ने इस मज़मून को एक वसी-तर इस्तिआराती सतह पर बरता है और नए नए पहलू तलाश किए हैं। ये शायरी नई हैरतों के साथ नए हौसले पैदा करती है। एक इंतिख़ाब हाज़िर है।
लोटनेلوٹنے
roll, wallow, welter, wriggle
एक रईस के यहां एक विलायती कुत्ता पला था। उसका नाम था शेरा। उसके लिए रोज़ाना का रातिब मुक़र्रर था, और वो आम तौर से घर के अहाते के अंदर ही रहा करता था। कभी -कभी बाज़ारी कुतियों के पीछे अलबत्ता भागता था। जब वो बड़ा हुआ तब उसकी ये...
"हूँ!" औरत ने ख़ुद को कुछ महफ़ूज़ होता हुआ पाया। बे-ख़याली में वो मेज़ से अपना हैंड बैग उठा कर कमरे से निकली और सीढ़ीयां उतरती चली गई। वो साँप लोटने पर ग़ौर कर रही थी। क्या साँप लोटने से भी कुछ नुक़्सान होता है? ज़हर तो साँप के फन...
नौ-बहार तो ज़मीन पर लोटन कबूतर बन गई... “अरी सलाम नहीं मुजरा। अभी तक नहीं किया तो बस समझ ले तेरी ख़ैर नहीं। देख पहले ख़ानम साहब के सामने जाके तीन बार ख़ूब झुक कर सलाम कर... ऐसे।” शिबू ने सलाम करके बताया। “समझी?”...
मैंने नसीम से उस का तआरुफ़ कराया। रफ़ीक़ ने उस को जब दिल्ली में देखा तो वो छोटी सी बच्ची थी जो ब-क़ौल रफ़ीक़ हर वक़्त चुनरिया ओढ़े इधर उधर फुदकती रहती थी। नसीम, रफ़ीक़ को जानती थी। उनमें जो गुफ़्तगू हुई बहुत पुर-तकल्लुफ़ थी। इस की वजह ये है...
माता! क्या तुम बता सकती हो कि रामा ने मुझे क्यों भुला दिया। माता! तुम जवाब क्यों नहीं देती हो। अच्छा मैं समझ गई, तुम कहती हो कि उनका नाम जपो। लेकिन मैं तो उनका नाम आज से नहीं बल्कि बाले-पन से जपती रही हूँ। फिर भी वो मेरे नहीं...
नतीजा येह निकला कि मैं चीख़ता पीटता रह गया और मल्लाह ने तेज़ी से कश्ती को ले जाकर गर्दाब में डाल दिया और कश्ती ने चर्ख़ घूमना शुरू किया।जब कश्ती घूमी तो अव़्वल तो मुझे डर लगा।लेकिन फिर लुत्फ़ आया।हम दोनों कश्ती का किनारा पकड़े नीचे पानी को देखने लगे।ये...
मोटी-मोटी घी चुपड़ी दो रोटियाँ और छाछ से भरी हुई लुटिया ले कर जब कनीज़ ने खेत पर जाने के लिए छोटे की उँगली पकड़ी तो सकीना जैसे नागिन की तरह लोटने लगी। “रोटी दे कर फ़ौरन मुड़ आइयो, धूप इस दीवार तक न चढ़ने पाए री।” सकीना ने सामने...
समझ ले ये दिल में 'आसमाँ' तू वो लोट हैं तेरे लोटने परजो ओढ़ कर लटपटा दुपट्टा लुटाते हैं अदबदा के आँचल
पहुँचा किसी को सदमा कि हम लोटने लगेसारे जहाँ का दर्द हमारे जिगर में है
नीम बिस्मिल की क्या अदा है येआशिक़ो लोटने की जा है ये
Devoted to the preservation & promotion of Urdu
A Trilingual Treasure of Urdu Words
Online Treasure of Sufi and Sant Poetry
World of Hindi language and literature
The best way to learn Urdu online
Best of Urdu & Hindi Books