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ग़ज़ल
कमी पहले ही थी शायान अहल-ए-ज़र्फ़ की लेकिन
नज़र से हो रहे हैं आज कल अहल-ए-नज़र ग़ाएब
शायान क़ुरैशी
ग़ज़ल
अगर ख़ामोश कर भी दी ज़बाँ रस्म-ए-मोहब्बत में
सर-ए-महफ़िल मगर 'शायान' का किरदार बोलेगा
शायान क़ुरैशी
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ग़ज़ल
ग़म दिए दुनिया ने लेकिन मुझ को पहचाने बग़ैर
कोई ग़म शायान-ए-मौज-ए-इज़्तिराब-ए-दिल नहीं
अज़मत भोपाली
ग़ज़ल
क्या ज़िक्र-ए-मेहर उस की नज़र में है दिल वो ख़्वार
शायान-ए-जौर-ओ-ज़ुल्म दिल-आरा नहीं रहा