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शेर
शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मय-कशी रही
उस ने जो फेर ली नज़र मैं ने भी जाम रख दिया
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
शिद्दत-ए-तिश्नगी में भी ग़ैरत-ए-मय-कशी रही
उस ने जो फेर ली नज़र मैं ने भी जाम रख दिया
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
इश्क़ है तिश्नगी का नाम तोड़ दे गर मिले भी जाम
शिद्दत-ए-तिश्नगी न देख लज़्ज़त-ए-तिश्नगी समझ
ख़ुमार बाराबंकवी
ग़ज़ल
ये शुऊ'र-ए-तिश्नगी है या ग़ुरूर-ए-तिश्नगी
तिश्ना-लब दरिया पे जा के तिश्ना-लब लौट आए है
सय्यदा शान-ए-मेराज
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ग़ज़ल
क्या पान की सुर्ख़ी ने किया क़त्ल किसी को
शिद्दत से है क्यूँ आज तिरी तेग़-ए-ज़बाँ सुर्ख़
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
ग़ज़ल
शिद्दत-ए-ज़ब्त की लज़्ज़त को घटा देती हैं
आँखें नादान हैं क्यों अश्क बहा देती हैं
शान-ए-हैदर बेबाक अमरोहवी
शेर
अभी आते नहीं उस रिंद को आदाब-ए-मय-ख़ाना
जो अपनी तिश्नगी को फ़ैज़-ए-साक़ी की कमी समझे
आल-ए-अहमद सुरूर
ग़ज़ल
बुझती नहीं है तिश्नगी दीदार-ए-यार की
नज़रों से उन के लाख पिलाने के बअ'द भी
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
ग़ज़ल
तिश्नगी होगी जहाँ बे-साख़्ता नौहा-कुनाँ
उस जगह हम दास्तान-ए-कर्बला ले जाएँगे