aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "शो-रूम"
बुक कार्नर शो रूम
पर्काशक
अपना शो-रूम मिरे घर को बनाया तू नेजिस में हर रंग का मोडल है सजाया तू ने
इस के बाद बारी साहब से बातें करते करते उठे और अंदर शो-रूम में चले गए। बारी साहब की गुफ़्तगू से आग़ा साहब मुतास्सिर हुए थे। चुनांचे उन्होंने बारी साहब की सिफ़ारिश पर कई किताबें खरीदीं। इस दौरान में बारी साहब ने उनसे कहा। “आग़ा साहब आप हिन्दुस्तानी ड्रामे की...
आज से चंद रोज़ पहले की बात है, मैं एक इलेक्ट्रोनिक्स की शाप पर बैठा था तो वहां एक नौजवान लड़की आई। वो किसी टेप रिकार्डर की तलाश में थी। दुकानदार ने उसे बहुत आला दर्जे के नए नवेले टेप रिकार्डर दिखाए लेकिन वो कहने लगी मुझे वो मख़सूस क़िस्म...
शो-रूमों सेडरने वाले
आँखों पे शब रक़म भी नहीं कर सकूँगा मैंऐ ख़्वाब तेरा ग़म भी नहीं कर सकूँगा मैं
कर्बला की घटनाओं और इमाम हुसैन की शहादत के बारे में उर्दू में बहुत कुछ लिखा गया है। कभी इतिहास के रूप में, कभी शोक और मर्सिया के रूप में, कभी कल्पना और कहानी के रूप में, अर्थात् असत्य पर सत्य की जीत की इस कहानी ने उर्दू साहित्य के क्षितिज को व्यापक बनाया है। ऐसी सभी पुस्तकें रेख़्ता के "वाकियाता-ऐ-कर्बला" संग्रह में मौजूद हैं।अवश्य पढ़ें।
मर्सिया शब्द अरबी मूल शब्द ‘रिसा’ से बना है जिसका अर्थ होता है किसी की मृत्यु पर विलाप करना| उर्दू शायरी की एक विधा के रूप में मर्सिया यूँ तो किसी भी प्रिय व्यक्ति के देहांत पर लिखी जाने वाली शोक-कविता हो सकता है|
राम लाल के शब-ओ-रोज़
हुमा जमाल रिज़्वी
शोध
Islamiyat
मालिक राम
Chakbast
राम लाल नाभवी
रूह-ए-ग़ालिब
सय्यद मुहीउद्दीन क़ादरी ज़ोर
जीवनी
Fasana-e-Ghalib
Socialism
श्री राम चनड होक
Zikr-e-Ghalib
शहरी आज़ादी
राम मनोहर लोहिया
शोध एवं समीक्षा
Aurat Aur Islami Taleem
तहक़ीक़ी मज़ामीन
मज़ामीन / लेख
हिकायात-ए-रूमी
सय्यद हाशमी फ़रीदाबादी
आलोचना
इस क़दर शोर रूह में बरपाख़ामोशी मेरी बोलने जैसी
शम'-रू मोम के बने हैं मगरगर्म टक मलिए तो पिघलते हैं
शम'-रू सीं 'सिराज' जा कर बोलकि पतंगों कूँ मत जलाता रह
जलते रहे बुतों की हुज़ूरी में शम'-रूपरियाँ सती हुई हैं शिवालों के सामने
'सिराज' उस शम'-रू बन जल गया हैनिपट हसरत के शो'लों की लपट में
वो शम'-रू अगर महफ़िल में आएतो उस को राह परवाने न देंगे
कौन सी शय से दिल मुख़ातब होकोई शय रू-ब-रू नहीं दिल में
कौन से दिन तिरे तसव्वुर सेमेरी शब रू-कश-ए-सहर न हुई
मज्लिस में 'आशिक़ों की जब आया वो शम'-रूमहजूब हो के शम' ने सूरत बदल किया
घुले सोज़-ए-फ़ुर्क़त में उस शम'-रू केये हाल अपना क्यूँ 'रिंद' जल कर बनाया
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