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ग़ज़ल
किसी गोशे में दुनिया के मकीं होते हुए भी
वो मेरे साथ रहता है नहीं होते हुए भी
मोहम्मद आबिद अली आबिद
नज़्म
तर्क-ए-वफ़ा के बा'द
तुम्हारे रोज़-ओ-शब से अब कोई निस्बत नहीं लेकिन
तुम्हारा 'अक्स हर लम्हे के आईने में मिलता है